Father to Son Summary Class 11 EnglisH

 

Father to Son Summary Class 11 English


Father to Son Summary Class 11 English

Father to Son Summary In English

This poem highlights a universal problem—the generation gap and the lack of communication between father and son. The poem begins with a father’s lament that he does not understand his child though they have been living together in the same house for so many years. He confesses that he knows nothing of him. In order to understand him, he tries to build up a relationship from what he knows about him when he was small.

However, the thread connecting the two is missing. He seems to have missed the link somewhere. Either he has destroyed this seed or misplaced it somewhere in an area which does not belong to him. The result is loss of affinity and closeness. They speak like strangers and there is no sign of understanding between them. The lack of communication between father and son highlights the growing chasm between the two generations. The father admits that the child’s physical shape is according to his own desires but their interests differ. He cannot share what the son loves.

The lack of common interests results in lack of communication. The son is busy in searching new avenues for himself and moving away to his own world. The father wishes that his son might return to him as the proverbial prodigal son. He would prefer his return to the place he is so familiar with rather than risk adventure to unknown and unfamiliar lands. Like the father in the old story about the prodigal son, he would also forgive his son. He hoped to build a new love from the sorrow of losing material wealth as a result of his son’s ventures.

A realization dawns on the father at last. He and his son must live on the same earth and on the part of land. Now when the son speaks, the father fails to understand it. It seems as if he cannot understand himself as the son is the image of father himself. The grief of separation causes anger. They make no special effort to make up the loss. The hand they extend is empty. However, there is a strong desire for something to help him in forgiving and forgetting the bitterness.

Father to Son Summary In Hindi

यह कविता एक विश्वव्यापी समस्या-पीढ़ियों में अन्तर तथा पिता-पुत्र के मध्य संचार की कमी को-आलोकित करती है। कविता पिता के इस दुखड़े से आरम्भ होती है कि वह अपने बच्चे को नहीं समझ पाती यद्यपि वे दोनों एक साथ इतने वर्षों से उसी मकान में रह रहे हैं। वह स्वीकार करता है कि वह उसके विषय में कुछ भी नहीं जानता। उसे समझ पाने के लिये वह उस आधार पर एक सम्बन्ध बनाने का प्रयास करता है जो कि उसे अपने पुत्र के विषय में उसकी छोटी उम्र में ज्ञात था।

किन्तु, दोनों को जोड़ने वाला सूत्र गायब है। ऐसा प्रतीत होता है कि इस सम्पर्क को वह कहीं गंवा बैठा है। या तो उसने इस बीज को ही नष्ट कर दिया है अथवा इसे किसी ऐसे क्षेत्र में गलती से रख दिया है जो (क्षेत्र) उसका अपना नहीं है। परिणाम है लगाव तथा निकटता की कमी। वे अजनबियों की भाँति बोलते हैं तथा उनके बीच आपसी समझ का कोई चिह्न दिखाई नहीं देता। पिता-पुत्र के बीच संचार की कमी दोनों पीढ़ियों के बीच बढ़ती हुई खाई को प्रमुखता से बताती है। पिता स्वीकार करता है कि बच्चे का शारीरिक रूप उसकी अपनी इच्छाओं के अनुसार है, किन्तु उनकी रुचियाँ भिन्न हैं। जो उसके पुत्र को प्रिय है, उनका वह आनन्द नहीं ले सकता।

आपसी (सांझी) रुचियों की कमी संचार (बातचीत) की कमी का कारण बनती है। पुत्र अपने लिये नये क्षेत्र खोजने में व्यस्त है। तथा अपने निजी संसार में आगे बढ़ा जा रहा है। पिता चाहता है कि उसका पुत्र उसके पास लौट आए चाहे उस कहावतों वाले अतिव्ययी (फिजूल खर्च) पुत्र की भाँति ही है। वह उसके उस स्थान पर लौट आने को अधिक अच्छा समझेगा जिससे वह परिचित है इसकी अपेक्षा कि वह अज्ञात एवं अपरिचित देशों में खतरे उठाये। कहानी वाले फिजूल खर्च बेटे के पिता की भाँति, वह अपने पुत्र को क्षमा कर देगा। अपने पुत्र के जोखिम भरे कार्यों (पूँजी निवेश) के कारण हुये भौतिक धन की हानि के दुःख से वह एक नये प्रेम का निर्माण करने की आशा करता है।

अन्त में पिता को समझ आती है। उसे तथा उसके पुत्र को उसी संसार तथा भू-भाग में रहना है। अब, जब पुत्र बोलता है, तो पिता उसे समझने में असफल रहता है। ऐसा प्रतीत होता है कि स्वयं (अपने आप) को नहीं समझ पाता क्योंकि पुत्र भी पिता की आकृति (छाया) ही है। पृथकता का दुःख क्रोध का कारण बनता है। वे इस हानि की क्षतिपूर्ति करने के लिये कोई विशेष प्रयास नहीं करते। जो हाथ वे आगे बढ़ाते हैं वह खाली है। किन्तु, किसी ऐसी वस्तु के लिये तीव्र इच्छा अवश्य है जो उन्हें कड़वाहट भूलने तथा क्षमा करने में सहायता करें।

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